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बुद्धं शरणं गच्छामिमेरा सुकून सिर्फ मुझसे नहीं तुझसे भी है मेरी रोशनी वो जो जगमगाए सबके लिए मैं जो कहता लौट आते हैं शब्द वो ही लेकर बुद्ध-प्रवाह अकिंचन चिंतन सुख सृजन निर्द्वंद्व मन निर्लिप्त भाव संग शांति निलय
Show moreकुछ पन्ने बेनाम से ज़िंदगी का हिस्सा है एक-एक हरफ़ .....एक-एक पन्ना .....एक-एक सांस के नाम मगर बेनाम ....नहीं खोलते कुछ भी .....ये राज़ नहीं ....बस वादा है निभा रहा हूँ खुद से सच्चाई ....वो जो बेनाम जुडते हैं साथ रहते हैं ता-उम्र हर लम्हे के साथ एक-एक लम्हा .... माज़ी का.....हाल का.....आने वाले कल का ....ज़िंदगी का नाम है वो सब पढ़ रहे हैं जिनके नाम है जिनसे नाम है बेनाम ज़िंदगी के खूबसूरत चेहरे जो सिर्फ रूह को दिखते हैं जो सिर्फ रूह में रहते हैं आईना है मेरे रूह के अक्स बाहर-भीतररूह के साथ रूह में शामिलरूह के रूप
Show moreकभी नहीं खोलुंगा कुछ अनकहे पन्ने इनमे सब कुछ है मेरा झूठ मेरा सच मुझे रोकता है भय भी, अपनापन भी अजीब सा है मन संभाले रखता है हर लम्हा एक अनूठा रिश्ता जो हर एहसास से अलहदानाम ढूंढो तो मिलता ही नहीं शिखर सा दिखता है समंदर सा भरा रहता है मगर छिपा रहता है खोने के भय से .....खोया-खोया रहता है अंतर में...हर पल बोलता .....मौन को ओढ़े मौन को खोलता मौन को रचता.....ये मौन का रिश्ता किसी एक से जुड़ा नहीं है ये तत्व से जुड़ा है ये रूह से जुड़ा है देह -प्रेम से मुक्तभाव बंधन से परे खुला-खुला ...बंधा-बंधा...खुद को खँगालता रूह....की खुशबू से महकता कुछ नहीं कहता ....जीता है अनुभूति .....रूह एक है .....रूह का नाम नहीं होता ....रूह...रूह...है ....बस...रूह.....
Show moreकोई दूर रहना चाहे कोई कैसे करीब जाये बस दो चार कदम चले और ठहर जाये ....कोई एहसास ये जतलाये ये जो बस्ती है ....अपनों की ....बस नाम की ....पढ़ लो नाम ....यहाँ बसता नहीं कोई अब रूके-रूके लम्हे बस सजे हुए हैं तार-तार ही हैं उनके धागे हाथ भी लगाओगे तो टूट जाएँगे बस आभास है आभास के भास में शेष कुछ भी नहीं ना कोई आस.....ना विश्वास ....टटोलना मतहाथ कुछ नहीं आएगा ....खाली मन है ....बस रिक्तता का ही है वास यही है जीवन यथार्थ ....कोई दूर रहे ....रहने दो करीब ना जाओ ....कद दीवारें खड़ी हो जाये रास्ते बंद हो जाये ....बेहतर है बस .....रूक जाओ .... ....बेहतर है बस .....रूक जाओ .... बेहतर है बस .....रूक जाओ .... कोई रिश्ता ना बनाओ .................
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