कोई दूर रहना चाहे कोई कैसे करीब जाये बस दो चार कदम चले और ठहर जाये ....कोई एहसास ये जतलाये ये जो बस्ती है ....अपनों की ....बस नाम की ....पढ़ लो नाम ....यहाँ बसता नहीं कोई अब रूके-रूके लम्हे बस सजे हुए हैं तार-तार ही हैं उनके धागे हाथ भी लगाओगे तो टूट जाएँगे बस आभास है आभास के भास में शेष कुछ भी नहीं ना कोई आस.....ना विश्वास ....टटोलना मतहाथ कुछ नहीं आएगा ....खाली मन है ....बस रिक्तता का ही है वास यही है जीवन यथार्थ ....कोई दूर रहे ....रहने दो करीब ना जाओ ....कद दीवारें खड़ी हो जाये रास्ते बंद हो जाये ....बेहतर है बस .....रूक जाओ .... ....बेहतर है बस .....रूक जाओ .... बेहतर है बस .....रूक जाओ .... कोई रिश्ता ना बनाओ .................
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